कोई सुबह या शाम या फिर कोई घडी क्या खबर लेकर हमारे पास आयेगी, हमें पता नहीं होता। हम जीवन भर इसी अंधियारे में भटकते रहते हैं। इस अंधेरी गुफा में कहीं कुछ जब चमक कर बुझ जाता है तो हमें लगता है कि हमने क्या खो दिया और फिर अहसास भी होता है कि जो खो दिया वह कभी हमारा हिस्सा था।
अभी कुछ समय पहले दैनिक जागरण में पढा कि वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर नही रहे। मन उदास हो गया। पिछले कुछ समय से उनके स्वास्थ्य के बारे में अक्सर दैनिक जागरण पर ही समाचार पढने को मिलते थे। आशंका, आशा और सम्भावना की जो आंख-मिचौनी चल ही रही थी आज वह समाप्त हो गयी।
विष्णु प्रभाकर जीवन के प्रति समर्पित आस्थावान साहित्यकार थे।
इसी तरह २००५ में एक लम्बे अंतराल के बाद दैनिक जागरण में कुछ ढूंढ रहा था तो निर्मल वर्मा के दिवंगत होने का समाचार पढा था। लम्बे समय तक मन विचलित रहा।
उनसे मिलने के बारे में सोचा था २००४ की भारत यात्रा के दौरान । गुडगांव में ठहरा हुआ था मैं तब। पता नहीं फिर मन में लगा कि क्या मिलना उचित रहेगा और मैं लौट आया था।
बाद में उनके बारे में अन्य लोगों के संस्मरण पढते हुए लगा कि मुझसे भूल हो गयी। फिर सोचता हूं कि वह मिलना तो सिर्फ़ आमने सामने होना था लेकिन उनकी पुस्तकों के माध्यम से जितना उनको जानता हूं क्या उससे ज्यादा उन्हें देख पाता, जान पाता उनसे मिलकर । घडी दो घडी का मिलना भी क्या...
उनके बारे में एक लेख लिखना चाहा था, कभी पूरा नहीं कर पाया। कुछ लोगों के बारे में कहना-सुनना मुश्किल लगता है और लिखना तो असम्भव...
कोई जो हमारे बहुत-बहुत निकट हो उसे हम देख नहीं पाते, सुन नहीं सकते सिर्फ़ अनुभव कर सकते हैं ।
शायद ईश्वर भी हमारे उतने ही निकट हैं कि हम उन्हें देख नहीं पाते...
समय बीत रहा है, कडियां टूट रही हैं और हम देख रहे हैं। लेकिन किन आंखों से ?
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5384217/
Saturday, April 11, 2009
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आदरणीय विष्नु प्रभाकर जी को सादर श्रध्धाँजली - उनके परिवार के सदस्य राज माँगलिक जी मेरे शहर मेँ रहते हैँ कभी उनसे बातचीत की जायेगी
ReplyDelete- लावण्या
विष्णु प्रभाकर जी का जाना साहित्य के एक गद्ययुग के समापन की सूचना है। उनका लेखन और उनका व्यक्तित्व सभी कुछ आज के लेखन और लेखकों के लिये प्रेरणास्पद थे...यह कमी बहुत दूर तक और बहुत देर तक खलेगी।
ReplyDelete--शैलजा
khoob bhout khoob
ReplyDeleteविष्णु प्रभाकर जी का जाना साहित्य जगत के लिए के निश्चित रूप से खेद जनक सुचना है ...हमारे श्रद्घा सुमन अर्पित हैं उन्हें.....!!
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