Sunday, January 25, 2009

कैसे लिखें कहानी

कहानी और उसे लिखने के सम्बंध में मेरे कुछ विचार:





Tuesday, January 20, 2009

पहला ब्लॉग

सुमन घई जी का आभारी हूं जिनकी मदद से मेरा ब्लॉग शुरू हो पा रहा है।


लेखन कितना व्यक्तिगत और कितना सार्वजनिक होना चाहिये - यह प्रश्न मेरे मन-मस्तिष्क में काफ़ी समय से घूम रहा था। लिखना और उसे एक दम से लोगों के बीच बांटना कई बार बहुत सहज नहीं लगता। लेकिन हिन्दी राइटर्स गिल्ड (हिरागि) की स्थापना के बाद ऐसा लगा कि ब्लॉग लिखने का अब उचित अवसर आ गया है।


बहुत दिनों के बाद लिखना भी हो रहा है। ऐसा नहीं कि सृजनरत नहीं रहा, पिछले दो-तीन महीने पेंटिंग बनाने में बीत गये। रूप-रंग-रस-गंध क्या एक ही वस्तु की विभिन्न अभिव्यक्तियां नहीं ?


वसंत-पंचमी पास है (भारत के हिसाब से) तो बचपन की विगत स्मृतियां मन-मस्तिष्क पर दस्तक देने लगीं है। सरस्वती पूजा मेरे प्रिय त्यौहारों में एक है। भारत में कई बार समय की गणना भी त्यौहारों के परिप्रेक्ष्य में होती है - फ़लां बात पिछली होली की है या अमुक घटना दसहरे से पहले घटी थी आदि..

त्यौहार भारत से बाहर भी मनाये जाते हैं लेकिन जितना जुडाव वहां है वह अन्यत्र नहीं। कारण कई हो सकते हैं और उनकी तह में जाने का बहुत औचित्य नहीं।

भारत में वैसे जुडना हर चीज से हो जाता है -गांव-शहर, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, स्कूल-कालेज, धरती-आकाश, फूल-पत्ती...

एक कविता प्रस्तुत है - सरस्वती-वंदना। १८ साल पहले की यह कविता उन दिनों की याद दिलाती है जब लिखना एक कौतुक से कम नहीं था - खुद अपने लिखे को कई बार सुन्दर लिखावटों में लिखना, बार-बार पढना और मुग्ध हो जाना - एक करिश्मा से कम नहीं लगता था। यह वही कविता है जिसे पंकज ने मुज़फ़्फ़रपुर में जानकी वल्लभ शास्त्री जी को उनके निवास पर पढकर सुनायी थी।

















अस्तु, आज के लिये इतना ही। अगले ब्लॉग में "कैसे लिखे कहानी" लेख भेजने का प्रयास करुंगा।

वसंत-पंचमी की असीम शुभकामनायें !!!