Monday, July 23, 2012

सोशल नेट्वर्किंग - व्यंग्य - भाग १


मेरे शीघ्र प्रकाश्य व्यंग्य संग्रह “मेरे तूणीर, मेरे बाण” से

 भाग १

सोशल नेट्वर्किंग



हर युग विशेष होता है और उसे कुछ कुछ नाम से पुकारा जाता है. जिनका काम है पुकारना वह बिना पुकारे रह भी नहीं सकते. बाकी रहें हम जैसे लोग दूसरे जो कहे हम उसे सर झुका कर मान लेते हैं.

इसी आधार पर आज इंटरनेट का युग है. कोइ तीस पैंतीस साल पहले यह सब शुरू हुआ होगा. अगर समयावधि में कोइ त्रुटि रह जाये तो मुझे दोष मत दीजियेगा - यह मैंने अपनी बुद्धि अथवा अनुमान से लिखा है. इंटरनेट के आगमन ने जमाने को बदल कर रख दिया. ज़माना एक ऐसे चीज़ है जो बदलने के लिए सबसे आतुर रहता है. कंप्यूटर जब आया, ज़माना बदल गया. उसके पहले कार और हवाई जहाज आये थे तो भी ज़माना बदल गया था. वैसे भी बदलने वाले को कौन रोक सकता है. कुछ तो बिन कारण ही बदल जाते हैं. ज़माने के पास तो फिर भी पर्याप्त और उसमें भी वैधानिक कारण है.

इंटरनेट ने वास्तव में बहुत कुछ बदल के रख दिया है. फाइलों की बड़ी बड़ी बण्डलें कंप्यूटर नामक डब्बे में बंद हो गयीं. हर मेज पर एक आदमी (अथवा महिला) बैठा है और उसके आगे एक (कई बार एक से अधिक भी ) कंप्यूटर. कभी ध्यान से देखें अथवा गौर करें तो आपको लगेगा कि आदमी कंप्यूटर के रूप में अपने सर को मेज पर रखे बैठा है. बात सही भी है. अब आदमी का दिमाग चलता भी कहाँ है- जो करता है वह तो कंप्यूटर ही है. जिसका  जितना अधिक दिमाग उतने ही संख्या में कंप्यूटर अथवा दूसरे यन्त्र उसकी मेज के आगे आप देखेंगे. बचपन में भूत-प्रेत की कथाओं में सुनाता था की चुड़ैल अथवा डायन अपना सर आगे रखकर जुएँ खोजतीं और मारतीं थीं. तब तो अचरज के साथ दम साधे ये बातें मैं सुना करता था. आज सोचता हूँ तो लगता है की वह बहुत आश्चर्यजनक नहीं था.



एक बात तब भी परेशान करती थीं और आज भी कि जुओं ने किसी को भी नहीं छोड़ा अब जीवित लोगों का खून तो सभी चूसते हैं चिपकने, चूसने और लदे रहने वाले परजीविओं की तादाद में कभी कमी आयी नहीं लेकिन भूत-प्रेत को तो मैं बहुत श्रद्धा की दृष्टि से देखता था और सोचता था कि सांसारिक कष्ट, व्याधियों और उपद्रवों से तो वे परे रहते होंगे, फ़िर ये जुएं ? कौन जाने सारे रहस्य सुलझाये नहीं जा सकते

            कम्प्यूटर ने आदमी की खोपड़ी को तो मेज पर ही लाकर रखा था लेकिन इंटरनेट ने तो तमाम चीजों को धरातल से उठाकर, तरंगों में परिवर्तित कर ऐसे काल्पनिक स्थान पर रख दिया है जिसका आम आदमी अनुमान भर ही कर सकता है पर जानकार लोग उसे श्रद्धा सेसाईबर स्पेसके नाम से बुलाते हैं वहां सब कुछ उपलब्ध है अथवा सबकुछ वहीं उपलब्ध है आज हम उसके बिना नितांत अकेले, असहाय और दीन-हीन हो जायेंगे आज सारी दुनियावर्चुअलयानी अवास्तविक होती जा रही है वैसे भी इस दुनिया वास्तविक चीजों की संख्या में रात-दिन गिरावट दर्ज होती रही है अब सब कुछवर्चुअलहोने के कारणसाईबर स्पेसका उपनिवेश हो गया है किताब ढूंढने के लिये लोग अब पुस्तकालयों के चक्कर नहीं लगाते वरन इन्टरनेट पर ही पा जाते हैं पता ढूंढना हो तो चाय-पान की दुकान पर खड़े होकर अब पूछना नहीं होता, लोग पहले ही से इन्टरनेट पर पता कर लेते हैं इस कारण जहां चाय-पान वालों का व्यवसाय प्रभावित हुआ है (लोग पूछने आते तो चाय-पान तो यदा-कदा ले ही लेते थे) वहीं चार लोगों से परिचय करने-कराने, हित-मित्र बनने-बनाने का सिलसिला भी टूट रहा है अब तो आप सब कुछ खरीद-बिक्री भी इंटरनेट पर कर सकते हैं ये सब तो छोड़िये लोग तो अब वहां शादियां भी मचा रहे हैं कितनी गिनती कराई जाय इतना भर जानिये कि हम इंटरनेट के और इंटरनेट हमारा हैदफ़्तर, स्कूल, अस्पताल, सरकार, समाचार, खान-पान, रेस्ट्रांअब इतना कुछ उपलब्ध कराने वाला लोगों की आंखों का तारा भला कैसे हों !



देखते-देखते वह दिन भी आया वह दिन भी आया जब लोगों ने इंटरनेट को एक दूसरे से कुछ-कुछ साझा करने का मंच बनाया आदमी स्वभाव से ही सामाजिक प्राणी है यह बात और कि आखिर ये समाज है क्या ? इस तर्क-वितर्क में जाकर हम आपको सीधे आपके साधन, साध्य और आराध्य से परिचय करवा दें  - ‘सोशल नेटवर्किंग’ को आप हिन्दी में अंशत: सामाजिक मेल-मिलाप कह सकते हैं वैसे अनुवाद के टेढे रास्ते जाकर इसके अंग्रेजी नाम को ही गले लगा लें, जैसा कि अक्सर सहज होता है तो यह युगांतकारी और अद्भुत है गपियाने की वहीं प्राचीन विवशता, देखने-दिखाने की वही आतुरता, ताकने-झांकने की वही आध्यात्मिक उत्कंठा को भुनाने के उद्देश्य से अमेरिका के एक होनहार युवक ने अपने कमरे की वर्षों की एकांत साधना के बाद एक वैदिक मंत्र की तरह इसका सन्धान किया और नाम दियाफेसबुक यह वही आदिम भूख है जिसके लिये गुफ़ा से निकलकर मनुष्य ने धरती और अन्तरिक्ष पर अपने प्रभुत्त्व की छतरी तान रखी है यह ऋषि भी उसी गुरुकुल परम्परा से है जहां पहले कभीयू-ट्यूब”, “ब्लाग”, ’औरकुटजैसे मानव कल्याणार्थ सोशल नेटवर्किंग स्थानों की संकल्पना, संरचना और पूजा-अर्चना हुई थी लोग तब भी अभिभूत थे और आज भी हो रहे हैं हों भी नहीं तो कैसे, युगों-युगों में कभी-कभी ऐसा होता है मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर जो कोई नेस्त्रादमस की भविष्यवाणियों के दोहों का सही शाब्दिक अर्थ बाचकर इस अभूतपूर्व घटना के घटित होने की भविष्यवाणी को उद्घाटित कर दे नेस्त्रादमस की भविष्यवाणियां कुछ इस लहजे में है कि आप अपनी श्रद्धानुसार जो चाहे अर्थ लगा सकते हैं ऐसा करने वालों की कभी कमी रही तो नही ही है रातों-रात विडियो बनने लगे, यू-ट्यूब पर डलने लगे और लोग देख-देख कर आनन्दित होने लगें देखते-देखते लोगों ने यू-ट्यूब पर सब कुछ डाल दियाभजन-सन्ध्या, लोरी, कविता, समाचार, पुरस्कार, यहां तक कि बच्चे-घर-परिवार कुछ भी गोपनीय नहीं रहा लोगों ने घर का अगवाड़ा, पिछ्वाड़ा, यहां तक कि बैठकखाना, बेडरूम तक का भी विडियो बनाकर यू-ट्यूब पर रख दिया श्रद्धा में सुध किसे रहती है अब जब साझा करना तो फ़िर डरना अथवा शर्माना क्या

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